केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने न्यायपालिका को विधायिका के काम में हस्तक्षेप नहीं करने की सलाह देते हुए शुक्रवार को कहा कि शासन का काम जनता द्वारा निर्वाचित सरकारों का है।
उन्होंने कहा, ‘मुझे यह बात इसलिए कहनी पड़ रही है क्योंकि हाल के दिनों में कुछ अदालतों में शासन का काम अपने हाथ में लेने की प्रवृत्ति देखी गई है। जिस पर विचार करने की जरूरत है।’ प्रसाद ने कहा कि शासन के साथ जवाबदेही भी होती है। आप (न्यायपालिका) शासन करें लेकिन आपकी जवाबदेही न हो, यह संभव नहीं है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। इस दौरान एनएचआरसी के अध्यक्ष और भारत के पूर्व चीफ जस्टिस एचएल दत्तू भी मौजूद थे। प्रसाद ने आगे कहा कि संविधान में शासन व्यवस्था का ढांचा स्पष्ट रूप से परिभाषित है।
इसमें हर अंग के अधिकार निर्धारित हैं और उसके लिए उसकी जवाबदेही भी है। न्यायपालिका को असंवैधानिक और मनमाने कानूनों को निरस्त करने का अधिकार है, गड़बड़ करने वाले राजनेताओं को अयोग्य ठहराने का अधिकार है लेकिन शासन करने और कानून बनाने का काम उन लोगों पर छोड़ दिया जाना चाहिए जिन्हें जनता ने इसके लिए चुना है।