गौरी लंकेश को कर्नाटक सरकार ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी

0
206

गौरी लंकेश को कर्नाटक सरकार ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी। गौरी लंकेश को राजकीय सम्मान दिया गया और सलामी दी गई। इस तरह की विदाई आमतौर पर शहीद को दी जाती है। भारतीय इतिहास में किसी पत्रकार को हत्या के बाद इस तरह का सम्मान दिया गया हो, ऐसा कोई उदाहरण ध्यान में नहीं आता है। गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिस तरह से पहला कड़ा सवाल राज्य सरकार से होना चाहिए था, उससे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पहले ही मुक्ति मिल गई। वजह ये कि वामपंथी कार्यकर्ता गौरी लंकेश हिन्दुत्व के खिलाफ, दक्षिणपंथ के खिलाफ लिखती रहती थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घनघोर आलोचक थीं। बस इतने भर से ही आसानी से कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार को लेफ्ट और लेफ्ट लिबरल विचारकों ने पहले ही क्लीनचिट दे दी।

ADVT

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पत्रकारों को बताया कि गौरी लंकेश का निधन कर्नाटक के लिए और निजी तौर पर उनके लिए कितना बड़ा नुकसान है। सिद्धारमैया ने कहा कि एक प्रगतिशील आवाज चली गई और उनके लिए एक दोस्त का जाना है। और उस दोस्त को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। ये सचमुच देश को नहीं, तो कम से कम कर्नाटक राज्य की जनता को जानना चाहिए कि आखिर गौरी लंकेश की अंतिम विदाई राजकीय सम्मान के साथ क्यों की गई। सिर्फ इसलिए कि जल्दी ही कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होना है और उससे पहले एक पत्रकार की हत्या में दक्षिणपंथियों को कठघरे में खड़ा कर देना है। सिर्फ इसलिए कि राज्य में कहीं फिर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार न आ जाए। इस तरह की शातिर राजनीति कांग्रेस ही कर सकती है।

गौरी लंकेश के भाई का साफ कहना है कि सीसीटीवी की फुटेज से सब एकदम साफ हो जाएगा। मगर उस रिपोर्ट के आने से पहले ही दक्षिणपंथी, हिन्दुत्ववादी ताकतों को गौरी का हत्यारा साबित करने की कोशिश की गई। गृह मंत्री रामलिंगा रेड्डी कह रहे हैं कि हमने सबूत इकट्ठा किया है, तब तक का इन्तजार कीजिए। लेकिन, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इन्तजार करने को तैयार नहीं हैं। राहुल गांधी ने इस हत्या में संघ-भाजपा को जोड़ने की कोशिश की है। जबकि, अभी तक कोई भी सबूत किसी के पक्ष या खिलाफ में नहीं गए हैं। और जब राहुल गांधी ने सीधे संघ-भाजपा को घसीट ही लिया, तो सिद्धारमैया क्यों पीछे रहते। उन्होंने कहाकि, कलबुर्गी, पन्सारे और दाभोलकर की हत्या जैसा हथियार ही गौरी लंकेश की हत्या में भी इस्तेमाल किया गया है।

ये कहकर सिद्धारमैया उसी सिद्धांत को हवा देते रहने की कोशिश को ही आगे बढ़ा रहे हैं, जिसके आधार पर कलबुर्गी, पंसारे और दाभोलकर के हिन्दू विरोधी होने के आधार पर दक्षिणपंथी ताकतों की वजह से हुई हत्या साबित किया जा सके। मगर यह संभव नहीं है। वैसे, भी सिद्धारमैया इस बात में ज्यादा व्यस्त हैं कि कैसे लिंगायत को हिंदूसे निकालकर अलग धर्म बनवा दिया जाए। सवाल है कि कम से कम अपने राज्य में हुई हत्या के अपराधी को सिद्धारमैया और दूसरी कांग्रेस सरकारें खोजतीं और साबित करते कि हत्या किसने की। मगर ये कांग्रेस की राजनीति में फिट नहीं बैठता है। कांग्रेस की राजनीति में संदेह बना रहे, ये श्रेष्ठ स्थिति है। उसका उदाहरण देखिए। एम एम कलबुर्गी की हत्या कांग्रेस के राज में 30 अगस्त 2015 को हुई, अभी तक हत्यारे पकड़े नहीं जा सके हैं।

पुणे में नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कांग्रेस के राज में 20 अगस्त 2013 को हुई, उसमें भी कुछ पता नहीं चला। नरेंद्र दाभोलकर अंधविश्वास निमरूलन के काम में लगे हुए थे, इसलिए मान लिया गया कि संघ और भाजपा सिर्फ इसी बात पर नरेंद्र दोभालकर की विरोधी थी। 1जनवरी 2014 में यूपीए की सरकार ने दाभोलकर को मरणोपरान्त पद्मश्री पुरस्कार दिया। 67 साल में दाभोलकर की हत्या होने के बाद ही कांग्रेस सरकार को ये लगा कि अब उन्हें पद्मश्री दिया जाना चाहिए। उसके तुरन्त बाद लोकसभा के चुनाव थे और अभी जब गौरी लंकेश की राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि की गई, तो भी चुनावी राजनीति ही नजर आती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here