कैंसर को बढ़ावा दे रही रासायनिक खेती पर सर्जिकल स्ट्राइक की आवश्यकता
पोषण युक्त आहार ही है जैविक खेती का उद्देश्य
मनोज गुप्ता
लखनऊ। मानव स यता के विकास में कृषि की अमूल्य भूमिका रही है, कृषि से ही संस्कृति का जन्म हुआ और कृषि ने ही हमें संस्कारित बनाया। यह कहना है देश में जैविक खेती की अलख जगा रहे बाबा दीपक सचदे का। उनका कहना है कि हमारे पूर्वजों ने काफी शोध के बाद हमें जो ज्ञान का अकूत भण्डार दिया था जिससे हम प्राकृतिक संसाधनों से पौष्टिïक अन्न का उत्पादन करते थे, लेकिन जब से हम उसे छोड़कर रासायनिक खेती करने लगे, हमारी खेती में जहर घुल गया, जिसके चलते हमारा देश आज कैंसर जैसे न जाने कितने असाध्य रोगों से जूझ रहा है। श्री सचदे का कहना है कि रासायनिक खेती से वर्तमान में हमारे देश की मिट्टïी में इतना केमिकल मिल चुका है कि जो अनाज पैदा हो रहा है वह जहरीला हो चुका है। अगर हमें इन असाध्य रोगों से बचना है तो अपने खेतों की मिट्टी का शुद्घिकरण करके जैविक खेती करनी होगी। ‘स्वतंत्र भारतÓ से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का एक सूक्ति वाक्य है-‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क होता हैÓ इसका मतलब है कि जब तक हम स्वस्थ नहीं होंगे हमारे विचार भी स्वस्थ नही होंगे और हम जो कार्य करेंगे उनमें भी त्रुटियां होंगी, ठीक इसी प्रकार एक प्राचीन कहावत है- ‘जैसा खाये अन्न वैसा हो मनÓ यानि कि हमारे शरीर पर हमारे खान-पान का सबसे ज्यादा प्रभाव होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा मन और मस्तिष्क दोनों ही हमारे आहार पर निर्भर है फिर हम अपने आहार में रासायनिक जहर क्यों घोल रहें हैं। श्री सचदे कहते हैं कि पंजाब में सबसे ज्यादा रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर आधुनिक खेती की, जिससे वहां बेहतर पैदावार जरूर हुई ,लेकिन आज वही विनाश का कारण बनती जा रही है। पंजाब में कैंसर जैसी बीमारियां बहुत तेजी से पैर पसार रहीं हैं जो देश के लिए घातक हैं। श्री सचदे प्रधानमंत्री मोदी से जहरीली खेती को रोकने की अपील करते हुए कहते हैं कि, देश के स्वास्थ्य के लिए रासायनिक खेती पर आज सर्जिकल स्ट्राइक करने की आवश्यकता है और प्रधानमंत्री को इस विषय पर तत्काल कदम उठाने चाहिए। पेश है श्री सचदे से इस विषय पर हुई बाचतीत के कुछ अंश………..
क्या रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना आज के समय में खेती स भव हैï?
बिलकुल स भव है, हमारे पूर्वजों ने काफी शोध के बाद हमें जो ज्ञान का अकूत भण्डार दिया है, हम उसे छोड़कर विदेशी तकनीक यानि कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे हमारी मिट्टïी जहरीली होती जा रही है, हमारे देश में जैविक खाद का चलन था जो कि हम स्वयं तैयार करते थे जिससे न कचरा होता था न ही कोई प्रदूषण।
जैविक खेती क्या है?
खेती का उद्देश्य होना चाहिए पोषण युक्त आहार, इस परिकल्पना को केवल जैविक खेती के जरिये ही हम पूरा कर सकते हैं। आज हम किसान को मिस गाइड कर रहे हैं, उपज बढ़ाने के नाम पर उसे रासायनिक उर्वरकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। किसान को मिस गाइड करने का मतलब है देश के आरोग्य को दांव पर लगाना और देश को ग भीर बीमारियों की ओर ढकेलना।
आप खेती में इको सिस्टम लागू करने की बात करते हैं, इसका क्या महत्व है?
हम हमेशा से सरकार से मांग करते आए हैं कि सरकार खेती में इको सिस्टम लागू करे, इसके तहत प्रति हेक्टेयर छ: हजार पौधे खेतों के चारो ओर लगाये जाएं, जिससे उस खेत का तापमान सात डिग्री तक कम हो सकता है। अन्तर्राष्टï्रीय वैज्ञानिकों का मत है कि ग्लोबल वार्मिंग से दो डिग्री तापमान बढऩे वाला है। इस प्रकार हम सात डिग्री तक तापमान कम करके ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले खतरे को कम कर सकते हैं। इससे पवन की गति भी कम हो जायेगी जिससे खेत का जैव भार (बायो मास)बढ़ेगा, खेत का आर्गेनिक कार्बन बढ़ेगा जो उर्वरक का काम करेगा। इसके अलावा इससे हमें पशु के लिए चारा, घर के लिए लकड़ी भी प्राप्त होगी।
आपका कहना है कि जैविक खेती से किसानों की आय बढ़ेगी क्या यह स भव है?
निश्चित रूप से जैविक खेती से किसानों की आय बढ़ेगी,जैविक खेती से खेत का जैविक कार्बन (आर्गेनिक कार्बन)बढ़ता है। जैविक कार्बन बढ़ेगा तो खेती में पानी की खपत कम होगी। इस पानी का प्रयोग हम अन्य फसल में कर सकते हैं जिससे लागत में कमी आयेगी और किसान की इनकम बढ़ेगी। खेती की इनकम बढ़ाने के लिए मछली पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन और बकरी पालन आदि को बढ़ावा देना गलत है क्योंकि यह भारतीय संस्कृति के विरूद्घ है, हमारी संस्कृति हमें यह सिखाती है कि अहिंसा परमो धरम:। इसलिए हमें खेती की आय जीवन द्वारा बढ़ानी है, न कि हत्या करके।
मल्टीनेशनल क पनियों के बीजों की जगह स्वयं बीजों का संरक्षण करने की तकनीक क्या है?
भारत दुनिया का सबसे प्राचीन देश है जहां सबसे पहले खेती की शुरूआत की गयी और हजारों वर्षों से हमारे यहां बीजों का संरक्षण प्राकृतिक तरीकों से किया जाता रहा है। जिससे न सिर्फ हमारी उपज में मिनरल सुरक्षित रहते हैं, वरन् बेहतर उत्पादन भी होता है। आज किसान अपनी उस प्राचीन पर परा को छोड़कर मल्टीनेशनल क पनियों के बीज पर आश्रित होते जा रहें है, जिससे लागत भी बढ़ती है और इस बीज से पैदा होने वाली उपज को दोबारा बीज के लिए प्रयोग नही कर सकतें। इससे किसानों को हर बार महंगा बीज खरीदना पड़ता है जिससे एक ओर खेती की लागत बढ़ती है तो दूसरी तरफ पैदा हो रहे अनाज में लगातार मिनरल घटते जा रहे हैं।
रासायनिक उर्वरकों से खराब हुए खेत किस प्रकार दोबारा सही कर सकते हैं?
इसके लिए हमने अमृत मिट्टïी और अमृत जल तैयार किया है। अमृत जल तैयार करने के लिए 10 ली. पानी में एक लीटर गोमूत्र और एक किलो ताजा गोबर मिलायें। इसके बाद 50 ग्राम गुड़ को पानी में घोलकर अच्छी तरह मिलायें, गुड़ के एवज में 12 अति पके केले या 6 अमरूद या कटहल की 12 कली या 500 मिलीलीटर गन्ने का रस या काजू के 12 फलों का रस या गूदा जो भी उपलब्ध हो उसका प्रयोग कर इस मिश्रण को ढककर रख दें। दिन में तीन बार इस मिश्रण को 12 बार घड़ी की दिशा में और 12 बार घड़ी की विपरीत दिशा में घुमाएं। घोल बनने के 72 घंटे बाद इसमें 100 लीटर पानी मिलायें , तैयार घोल अमृत जल कहलाता है।
इसी प्रकार अमृत मिट्टïी का एक ढेर बनाने में 140 दिनों का वक्त लगता है,अमृत मिट्टïी का एक ढेर बनाने के लिए 500 लीटर अमृत जल, जैविक सूखा अवशेष 80 किलो. बारीक मिट्टïी 60 किलो(10 प्रतिशत रेत) तथा विविध प्रकार के 300 ग्राम बीज की जरूरत होती है। अमृत मिट्टïी में सैकड़ों तरह के सूक्ष्म जीव (फफूंद और बैक्टीरिया)और कीट (केचुए एवं चीटियां)मिट्टïी को ढीला बनाए रखते हैं और खनिज पदार्थ उसकी गुणवत्ता बढ़ाते हैं। इसमें खनिज और सूक्ष्म जीवों से तैयार विविध रसायनों जैसे कल्चर, एमिनो एसिड नाशकारी कीड़ों से बचाते हैं। इस प्रकार अमृत मिट्टïी और अमृत जल के प्रयोग से हम अपने खेतों को वापस जैविक अवस्था में ला सकते हैं।
आपकी बाजार मुक्त समाज की परिकल्पना क्या है ?
किसान वह है जो अपने किचन की पूरी आवश्यकता पैदा करे और प्रति हेक्टेयर नौ परिवारों को खिलाए, यानि कि कुल मिलाकर प्रति हेक्टयर १० परिवारों को जोड़ा जाए तभी बाजार मुक्त समाज की व्यवस्था को अमली जामा पहनाया जा सकता है। पहले हमारी कृषि जैव विविधता (बायो डायवर्सिटी) पर आधारित होती थी और बड़े परिवार होने के बावजूद अपनी पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के हिसाब से खेती की जाती थी। पर आज ऐसा नही है न बड़े परिवार हैं, और न बायो डायवर्सिटी पर आधारित खेती। अब मोनो खेती बन गयी है और परिवार भी मोनो परिवार बनते जा रहे हैं।
जब हम विभिन्न प्रकार की फसल का उत्पादन अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से करेंगे तो किसी प्रकार की मोनोपोली नहीं रह जाएगी। इसके अलावा किसान का उपभोक्ता के बीच सीधा स बंध होना चाहिए, इससे फसल का पूरा फायदा किसान को मिलेगा और उपभोक्ता को सस्ता अनाज। इससे दलाली और कालाबाजारी पर अंकुश लगेगा और बाजार की आवश्यकता कम होगी।
क्या बाजार मुक्त समाज से किसानों की आय नहीं घटेगी?
किसान पंच महाभूतों का उपासक यानि कि अन्नदाता बने, व्यापारी नहीं। अभी एक भी किसान भारत का किसान नहीं है वह या तो व्यापारी है या ग्राहक। जब किसान पंच महाभूतों का उपासक यानि अन्नदाता बन जायेगा, किसान का खेत गुरुद्वारा बन जाएगा, तब किसान का उत्पादन प्रसाद बन जायगा, और जब किसान समाज को खिलाएगा तो समाज उसको मारेगा नही पूजेगा। भारतवर्ष के मन्दिरों में हमारे देश के बजट का चार गुना पैसा जमा है ये पैसा इसी समाज ने दिया है। जब किसान अन्नदाता बन जाएगा तो समाज किसान का भक्त, कारसेवक बन जाएगा और हर किसान का घर स्वर्ण मन्दिर बन जाएगा।
पूरे देश में हो रही जहरीली खेती से निजात कैसे स भव हैï?
देश के स्वास्थ्य के लिए रासायनिक खेती पर आज सर्जिकल स्ट्राइक की आवश्यकता है और प्रधानमंत्री को इस विषय पर ग भीरता से सोचते हुए तत्काल कदम उठाने चाहिए। आज पंजाब में लोग अपने खेत का गेहूँ नहीं खाना चाहते वह दूसरे प्रदेशों से गेहँू मंगाते हैं क्योंकि उनको लगता है कि शायद वहां पर केमिकल का प्रयोग कम हुआ होगा। देश के लिए नासूर बन गयी जहरीली खेती पर यदि रोक नहीं लगायी गयी तो आने वाली नस्लें हमें कभी माफ नहीं करेंगी। हमें विश्वास है कि प्रधानमंत्री मोदी ही इस समस्या से निजात दिला सकते हैं जब वह देश की सुरक्षा के लिए सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं तो देशवासियों के स्वास्थ्य के लिए क्यों नहीं?