नई दिल्ली|उच्चतम न्यायालय राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में शनिवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगा। न्यायालय की वेबसाइट पर एक नोटिस के माध्यम से शुक्रवार की शाम दी गई जानकारी के अनुसार प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ शनिवार को सवेरे साढ़े दस बजे फैसला सुनाएगी। संविधान पीठ ने 16 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शुक्रवार को उप्र के मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी और प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह को अपने कक्ष में बुलाकर उनसे राज्य में सुरक्षा बंदोबस्तों और कानून व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त की थी।प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्ईय संविधान पीठ ने, अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर छह अगस्त से रोजाना 40 दिन तक सुनवाई की थी। इस दौरान विभन्न पक्षों ने अपनी अपनी दलीलें पेश की थीं।संविधान पीठ ने इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए संबंधित पक्षों को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ (राहत में बदलाव) के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय दिया था।उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सभी पक्षकारों की दलीलों को विस्तार से सुना।
संविधान पीठ द्वारा किसी भी दिन फैसला सुनाए जाने की संभावना को देखते हुए केन्द्र ने देश भर में सुरक्षा बंदोबस्त कड़े कर दिए थे। अयोध्या में भी सुरक्षा बंदोबस्त चाक चौबंद किए गए हैं ताकि किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हो सके।संविधान पीठ ने इस प्रकरण पर छह अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू करने से पहले मध्यस्थता के माध्यम से इस विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने का प्रयास किया था। न्यायालय ने इसके लिए शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त् न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्ईय मध्यस्थता समिति भी गठित की थी लेकिन उसे इसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सारे प्रकरण पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई करने का निर्णय किया।
शुरूआत में निचली अदालत में इस मसले पर पांच वाद दायर किए गए थे। पहला मुकदमा राम लला के भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। इसमें उन्होंने विवादित स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना का अधिकार लागू करने का अनुरोध किया था।
उसी साल, परमहंस रामचन्द्र दास ने भी पूजा अर्चना जारी रखने और विवादित ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे ही मूर्तियां रखी रहने के लिए मुकदमा दायर किया था। लेकिन बाद में यह मुकदमा वापस ले लिया गया था।बाद में, निर्माेही अखाड़े ने 1959 में 2.77 एकड़ विवादित स्थल के प्रबंधन और शेबैती अधिकार के लिए निचली अदालत में वाद दायर किया।इसके दो साल बाद 1961 में उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड भी अदालत में पहुंचा गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना मालिकाना हक होने का दावा किया।राम लला विराजमान की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल और जन्म भूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर समूची संपत्ति पर अपना दावा किया और कहा कि इस भूमि का स्वरूप देवता का और एक न्यायिक व्यक्ति जैसा है।अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना और इसे लेकर देश में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद सारे मुकदमे इलाहाबाद उच्च न्यायालय को निर्णय के लिए सौंप दिए गए थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और राम लला- के बीच बांटने के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने मई 2011 में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए अयोध्या में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।