स्टीम बॉयलर में तोप के गोले से अधिक का प्रेशर और तापक्रम था। जब इसमें विस्फोट हुआ तो आसपास काम कर रहे मजदूरों के शरीर के चिथड़े उड़ गए।
1550 मेगावाट की एनटीपीसी के ऊंचाहार प्लांट में छठी इकाई में 500 मेगावाट की नई यूनिट चालू हो गई थी। इकाई शुरू हो गई थी लेकिन अभी लाइट अप (ग्रिड पर बिजली सप्लाई) नहीं हो रही थी। इसके बॉयलर में स्टीम बनाने प्रक्रिया में व्यवधान आया था। जांच में पता चला कि कोयला (चूरे के तौर पर) जलने के लिए अंदर जा नहीं पा रहा था। इससे 20 मीटर ऊंचा ढेर जैसा बन गया। ‘क्रिन्कर फार्मेशन’ में करीब 150 मजदूर मरम्मत का काम कर रहे थे। मजदूर इस कोयले के ढेर को तोड़ते हैं ताकि चूरे का प्रवाह बॉयलर में बना रहे। इस प्रवाह में व्यवधान होने के चलते अचानक बॉयलर में किन्हीं कारणों से विस्फोट हो गया। बॉयलर में मौजूद स्टीम बहुत अधिक प्रेशर और तापक्रम के साथ बाहर निकली तो वहां काम करने वालों पर मौत बनकर गिरी।
इंजीनियर लालमनी वर्मा ने बताया कि विस्फोट के समय इस स्टीम का तापक्रम 140 डिग्री से अधिक था। वहीं प्रेशर भी 765 किग्रा प्रति मिमी स्क्वायर था। यह इतना अधिक होता है कि 100 मीटर दायरे में मौजूद इंसान के चिथड़े उड़ा दे। जब घटना हुई तो करीब 40 मजदूर और कुछ अधिकारी इसके बेहद करीब थे। हादसे में उनकी जान चली गई।
यूपी में इतना बड़ा हादसा पहली बार
उत्तर प्रदेश में किसी तापीय विद्युत घर में इतना बड़ा हादसा पहली बार हुआ है। इंजीनियर संघ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे बताते हैं कि चार दशक पहले एक हादसे में एक-दो मजदूरों की मौत के तथ्य तो आए थे हालांकि इतनी बड़ी संख्या में मौतें नहीं हुई थीं। उन्होंने बताया कि बॉयलर और पाइप फटने की घटना ओबरा, पनकी और हरदुआगंज में भी हो चुकी है लेकिन हादसे में किसी की मौत नहीं हुई।
इंदिरा ने दिया था तोहफा, कल्याण ने कर्जे में चुका दिया
ऊंचाहार ताप विद्युत परियोजना 1981 में यूपी में आई थी। इसे इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी ताप विद्युत परियोजना के नाम से प्रदेश को सौंपा था। करीब 10 साल तक यह इकाई काम करती रही। 1991 में आई कल्याण सिंह की सरकार ने 900 करोड़ रुपये के बकाया कर्जे को चुकाने के लिए इसे एनटीपीसी को सौंप दिया था। तब से यह परियोजना एनटीपीसी चला रही है। यहां 210 मेगावाट की पांच इकाइयां,जिनकी कुल क्षमता 1550 मेगावाट है वर्तमान कार्यरत हैं।