नज़ीर बनकर सामने आया सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आबंटित किया जाए।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्ईय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का पटाक्षेप कर दिया। हालांकि, उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस निर्णय पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा है कि वह इस पर पुनर्विचार के लिए याचिका दायर करेगा। इस विवाद ने देश के सामाजिक और साम्प्रदायिक सद्भाव के ताने बाने को तार तार कर दिया था। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा कि नई मस्जिद का निर्माण प्रमुख स्थल पर किया जाना चाहिए। साथ ही उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए जिसके प्रति हिन्दुओं की यह आस्था है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था। इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था। विवादित स्थल गिराए जाने की घटना के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे। पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अधिकार राम लला विराजमान को सौंप दिया जाए, जो इस मामले में एक वादकारी हैं। हालांकि यह भूमि केन्द्र सरकार के रिसीवर के कब्जे में ही रहेगी। न्यायालय ने कहा कि हिन्दू यह साबित करने में सफल रहे हैं कि विवादित ढांचे के बाहरी बरामदे पर उनका कब्जा था और उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड अध्योध्या विवाद में अपना मामला साबित करने में विफल रहा है। संविधान पीठ ने यह माना कि विवादित स्थल के बाहरी बरामदे में हिन्दुओं द्वारा व्यापक रूप से पूजा अर्चना की जाती रही है और साक्ष्यों से पता चलता है कि मस्जिद में शुक्रवार को मुस्लिम नमाज पढ़ते थे जो इस बात का सूचक है कि उन्होंने इस स्थान पर कब्जा छोड़ा नहीं था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि मस्जिद में नमाज पढऩे में बाधा डाले जाने के बावजूद साक्ष्य इस बात के सूचक है कि वहां नमाज पढऩा बंद नहीं हुआ था। संविधान पीठ ने कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे मिली संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि क्या मस्जिद निर्माण के लिए मंदिर गिराया गया था। न्यायालय ने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण के साक्ष्यों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा। न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवादित स्थल को ही भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं और मुस्लिम भी इस स्थान के बारे में यही कहते हैं। पीठ ने कहा कि विवादित ढांचे में ही भगवान राम का जन्म होने के बारे में हिन्दुओं की आस्था अविवादित है। यही नहीं, सीता रसोई, राम चबूतरा और भण्डार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक तथ्य की गवाह हैं। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि सिर्फ आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक स्थापित नहीं किया जा सकता और ये विवाद का निबटारा करने में सूचक हो सकते हैं।
संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी की थी। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि तीन हिस्सों में बांटने का रास्ता अपना कर गलत तरीके से मालिकाना हक के मामले का फैसला किया। राम लला विराजमान की ओर से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने इस निर्णय पर प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए कहा, एयह बहुत ही संतुलित है और यह जनता की जीत है। लेकिन इस वाद में एक पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड फैसले से संतुष्ट नहीं है और उसने कहा कि वह इस पर पुनर्विचार का अनुरोध करेगा।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि इस फैसले का कोई महत्व नहीं है और इसमें बहुत सारे विरोधाभास हैं। इस वाद के एक अन्य पक्षकार निर्माेही अखाड़ा ने कहा कि उसे उसका दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह ने सभी समुदायों से फैसले को स्वीकार करने और शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि वे एक भारत, श्रेष्ठ भारत के प्रति प्रतिबद्ध रहें जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह निर्णय सामाजिक ताने बाने को सुदृढ़ करेगा। कांग्रेस ने भी कहा कि वह फैसले का सम्मान करती है और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में है। विहिप के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगडिया ने कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिए राम लाल जन्म स्थान दिया जाना लाखों कार्यकर्ताओं के त्याग का सम्मान है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने वकीलों और पत्रकारों से खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में इस बहुप्रतीक्षित फैसले के मख्य अंश पढ़कर सुनाए और इसमें उन्हें 45 मिनट लगे।
फैसले की बड़ी बातें
- अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, मंदिर का रास्ता साफ
- विवादित जमीन पर माना गया रामलला का हक
- सुन्नी वक्फ को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन मिलेगी
- निर्मोही अखाड़े और शिया वक्फ बोर्ड का दावा खारिज
- पक्षकार गोपाल विशारद को मिला पूजा-पाठ का अधिकार
- तीन महीने में केंद्र सरकार करेगी मंदिर ट्रस्ट का गठन
- राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा नया ट्रस्ट
- मुस्लिम पक्ष को जमीन देने की जिम्मेदारी योगी सरकार की
- आस्था और विश्वास पर नहीं, कानून के आधार पर फैसला
फैसले का सम्मान, पर संतुष्टï नहीं : जफरयाब जिलानी
नई दिल्ली। न्यायालय के फैसले के मद्देनजर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि हम इस फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन इससे संतुष्ट नहीं हैं। आगे की कार्रवाई के लिए बातचीत करके निर्णय लेंगे। फैसले में अदालत ने जो बातें कही हैं, उनमें से कुछ देश के भविष्य के लिए फ ायदेमंद हैं। बोर्ड के सचिव एवं वकील जफरयाब जिलानी ने कहा, फैसले के कुछ बिंदुओं खासकर जमीन देने की बात से हम अंसतुष्ट हैं। हम विचार करेंगे कि पुनर्विचार याचिका दायर करनी हैं या नहीं। उन्होंने मस्जिद के लिए पांच एकड़ की वैकल्पिक जमीन देने को लेकर कहा कि मस्जिद की कोई कीमत नहीं हो सकती। जिलानी ने कहा कि यह मुकदमा किसी की जीत और हार नहीं है और सभी को शांति बनाए रखनी चाहिए।
दाखिल नहीं होगी पुनर्विचार याचिका : जुफर फारुकी
लखनऊ। अयोध्या के बाबरी मस्जिद-राज जन्मभूमि प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का उत्तर प्रदेश सुन्नी सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड ने स्वागत किया है। बोर्ड के चेयरमैन जुफर अहमद फारुकी ने कहा कि हम न्यायालय के निर्णय का सम्मान और स्वागत करते हैं। उन्होंने कहा कि बोर्ड की ओर से निर्णय पर किसी तरह का रिव्यू पीटिशन नहीं किया जाएगा। वहीं आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव व बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जीलानी ने कहा कि उनकी व्यक्तिगत राय है फैसले का रिव्यू किया जाए। उन्होंने कहा कि रिव्यू को लेकर फैसला पर्सनल लॉ बोर्ड कार्यकारिणी बैठक में होगा। बैैठक में हो निर्णय होगा, उस पर अमल किया जाएगा। दूसरी ओर सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर अहमद फारुकी ने कहा कि मुस्लिम पक्ष का भी पहले से यही फैसला रहा है कि फैसले को स्वीकार करेंगे। हम निर्णय के दिल से मान रहे हैं। अयोध्या में मस्जिद के लिए जमीन दिये जाने पर उन्होंने कहा कि जमीन को लेकर बोर्ड बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें चर्चा के बाद कोई निर्णय लिया जाएगा। मध्यस्थता पैनल को अयोध्या में अन्य मस्जिदों के रख-रखाव को लेकर एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि अभी पूरा निर्णय पढ़ा नहीं है, निर्णय पढऩे के बाद कुछ कहेंगे। इसी के साथ श्री फारुकी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि देश में आपसी भाईचारा बना रहना चाहिए।