सरकार जल्द ही रियल एस्टेट को भी जीएसटी के दायरे में ला सकती है। ऐसा होने पर सभी राज्यों में रियल एस्टेट पर टैक्स की दरें समान हो जाएंगी। फिलहाल रियल एस्टेट पर राज्य सरकारें स्टांप ड्यूटी लगाती हैं जिसकी दरें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बृहस्पतिवार को यहां एक कार्यक्रम में कहा कि जहां तक और आइटम जीएसटी के दायरे में लाने का सवाल है तो रियल एस्टेट इनमें से सबसे आसान है। वित्त मंत्री का यह वक्तव्य इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राज्य सरकारें अब तक रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने का विरोध करती रही हैं।
देशभर में जीएसटी एक जुलाई से लागू हो गया। हालांकि रियल एस्टेट, बिजली और शराब इसके दायरे से बाहर हैं। यही वजह है कि सरकार के नीतिगत दस्तावेज ‘आर्थिक सर्वे 2016-17’ ने भी इन पर जीएसटी लगाने की वकालत की है।
सर्वे में कहा गया है कि शराब और रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने से देश में भ्रष्टाचार में कमी आएगी। हालांकि, राज्य रियल एस्टेट पर स्टांप ड्यूटी समाप्त करने और एक समान दर से जीएसटी लगाने के पक्ष में नहीं हैं। राज्यों ने जीएसटी काउंसिल की बैठक में इस विचार का पुरजोर विरोध किया है। रियल एस्टेट भी जीएसटी के दायरे में आने से कई बड़े राज्यों को राजस्व हानि की आशंका है। वैसे क्षतिपूर्ति कानून के तहत राज्यों को जीएसटी के चलते होने वाली राजस्व हानि की क्षतिपूर्ति पाने का हक है। वैसे दिल्ली सहित कुछेक राज्य हैं जो रियल एस्टेट पर भी जीएसटी लगाने की मांग कर रहे हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी जीएसटी काउंसिल की बैठकों में कहा कि अगर जमीन और रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया तो काले धन का सृजन नहीं रुकेगा।
विगत में सरकार की कई रिपोर्टो में भी यह बात सामने आई है कि रियल एस्टेट क्षेत्र में काले धन का सृजन होता है। ऐसे में जमीन और रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने से काले धन के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ सकती है।